“
दोस्ती मुझे भी करनी थी मगर
सब कहते है निभाने का चलन ही चला गया
कितनी उम्र बीत गई इंतजार में
लगता है आखरी दोस्त मिले बिन चला गया
जहाँ देखो खुशबू फैली है मगर कागज़ी फूलों से
कली से गुलाब बनाने का तो रिवाज ही चला गया
आज के दोस्त आज नकद कल उधार से है
गले पड़ते है, गले मिलने का अंदाज ही चला गया
#शर्माजी के शब्द
”