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देखा था एक...

देखा था एक सपना खुली से नील गगन के नीचे बैठकर क्या पता था सपना सपना ही था ओर चांद मेरा बैरी था जो उस सपनों को धूमिल कर चल दिया नए सफर पर।

By Harshita Gupta
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