“
भाव भाव में फ़र्क़ है
क्या तू समझ ये पायेगा ?
गर भाव रहा तेरा सच्चा
अनमोल कहा तू जायेगा।
जो भाव का तूने भाव कहा
तो सौदागर तू कहलायेगा।
भावों के दरिया में बह कर
मजनूं और रांझे तर गए
रुखसत होकर भी इस दुनिया में
जज़्बात (भाव)-ए-मोहब्बत भर के गए !
. . . नवनीत
”