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भाषा मात्र अपने विचारों के आदान -प्रदान का माध्यम नहीं होती अपितु ये उस क्षेत्र विशेष की एक जीवित सांस्कृतिक धरोहर है जिसे सहेजने के प्रयास किये जाने चाहिये। सभी को अपनी क्षेत्रिय भाषा में लिखने-पढ़ने-बोलने का ज्ञान होना चाहिये। पर जब एक समग्र राष्ट्र की एक भाषा चुनने की बात हो तब गैर-हिन्दी राज्यों से भी हिन्दी को समर्थन मिलना चाहिये।
अंकिता भदौरिया
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