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औरतों के लिए...
औरतों के लिए...
औरतों के...
“
औरतों के लिए साँचे ना बनाइए...ज़नाब।
वह जहाँ है, जैसी है... परिपूर्ण है।
बस उसे, उसके मौलिक स्वरूप में स्वीकार कीजिए।
✍️देवश्री पारीक 'अर्पिता'
”
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