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अपने गांव...

अपने गांव को छोड़कर शहरो की ऊंची दीवारों के बीच एक परिंदा हमेशा यही सोचता हैं ओ परिंदे तू भटकता आया क्यूं इधर न तेरी मां इधर है न तेरा घर न तेरा पिता इधर है न तेरा पता इधर

By Gaurav Dhaudiyal
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