“
अनदेखा अनजाना सा अनकहा एक डोर हैं,
नैनों की चाहत में बसा नैनों के उस ओर है..
होती है उनसे मुलाकात आखे जब मूंदता हूं,
सपनो के समंदर में फिर उसको मै ढूंढता हूं...
चुरा लेता हूं कुछ पल ये दिल बना बैठा चोर है,
नैनो की चाहत में बसा नैनों के उस ओर है...
Kumar Gaurav Vimal
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