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आगे बढ़ने...

आगे बढ़ने की होड़ में, पेच लड़ाते हैं दौड़ में| दूसरे को गिराने में खुद गिर जाते हैं, दूसरा ना बढ़ जाए इसलिए खुद नहीं बढ़ पाते हैं|| कवि प्रताप चौहान "प्रहरी"

By PRATAP CHAUHAN
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