मेघ जो छाया था आकाश में उतर आया जमीन पर अंबर को हसीन करने.. धरती की तृषा बुझाने.. धरा को सुकून पहुंचाने.. (प्रथम वर्षा एवं महीनों से मेरी खामोश कलम) वर्षा के बहाने ही सही लेकिन मेरी साहित्य की सरिता में प्रवाह आया है..
लगता है, तुम्हारे यौवन में बहार आया है।
ईसलिए तो शायद तुम्हारे होठों पर हसीन सा मुस्कान आया है।
चलो फिर एक बार इश्क़ के कुल्हड़ में चाय के स्वाद का पान करे।
सामने तुम्हे बिठा सुबह को शाम करे।
❤️ ईश्वर और इश्क़ जिसकी फिजाओं में आबाद है। बेशक वो बनारस है❤️