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कोई ताबीज़ ऐसा दो कि मैं चालाक हो जाऊं, बहुत नुकसान देती है मुझे ये सादगी मेरी।
गैर मुक्कमल सी है ये जिंदगी, और वक्त की बेतहाशा है रफ्तार। रात इकाई, नींद दहाई, ख्वाब सैकड़ा, दर्द हजार, फिर भी जिंदगी मजेदार। राजेश चतुर्वेदी (दुबई)