हरीतिमा के रूप यौवन में,
देखो आया नव निखार।
बाग-बगीचों में जो फैलीं,
बहुरंगी पुष्पों की बहार।
जाकर लौट सकता न कोई,
अनदेखी उस दुनिया से।
किरदार निभा चलें कोई,
जगत की नाट्यशाला से।
आहट पा मधुमास की,
यह उन्मुक्त मन हर्षाना।
सुन भ्रमर की गुंजन से,
लगता बसंत नव आया।