@mahendra-singh-katariya

MAHENDRA SINGH KATARIYA
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हरीतिमा के रूप यौवन में, देखो आया नव निखार। बाग-बगीचों में जो फैलीं, बहुरंगी पुष्पों की बहार।

जाकर लौट सकता न कोई, अनदेखी उस दुनिया से। किरदार निभा चलें कोई, जगत की नाट्यशाला से।

आहट पा मधुमास की, यह उन्मुक्त मन हर्षाना। सुन भ्रमर की गुंजन से, लगता बसंत नव आया।


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