Mukesh Chand
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writer and poet

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जीने के लिए राह आसान हो किसी को परखने का कला हो जिन्दगी तो आएगी तो जायेगी दस्तूर जिन्दगी जीने वाला भी हो।

पुस्तक से ज्ञान बढ़ा परीक्षा देकर मान बढ़ा विश्व पुस्तक दिवस की मान बढ़ा।

दंगे क्यों करते हो सभी को अपने धर्म का अधिकार दूसरों को छेड़ोगे तो स्वयं कुंवें में कूदोगे।

दौड़ लगाओ सोचो कम दूसरे का अनुसरण करो दूर तक जाकर देखो एक दूसरे ढंग पर मत चलो नहीं तो छोड़ कर दौड़ लगाओ।

मैं सोच रहा हूं क्या कुछ करें क्या कुछ न करें असमंजस के दौर से गुजर रहा हूं।

ड्राफ्ट सहेज लिया।

झंडा झंडा ऊंचा गणतंत्र दिवस, देश की बने शान। दिवस आए मजबूत हो, तिरंगा लहरा मान।। मुकेश चन्द नेगी

समर्पण की भावना हो, राह में कांटे जितने हो सफलता चूम लगी, तरह जितने भी जटिल हो भर लो जोश तो, उड़ान की रखो तुम उम्मीद लक्ष्य मिल जाएगी, बेकार ओर बेजार न हो।

मुश्किल डगर में, तुम मेरा साथ देना उलझन भरी हुई, जिन्दगी में साथ देना चाहे आंधी गुजरे, तूफान से बचकर रखना वक्त के पक्के धागों में, पिरोकर तुम साथ देना।


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