I'm Karan and I love to read StoryMirror contents.
Share with friendsबड़ा ही किफायती इश्क़ था हमारा, कर्जे वफ़ा भी मिली, ब्याज -ऐ दर्द भी न मिला, फिर भी रुखसत -ऐ मिट्टी हो गए हम, और सकूं का उन्हें इल्म भी न मिला।
भिखरे पन्नों पर लिखे धूंधले काले पुराने शब्दों की स्याही आज भी उंगलियों पर नजर आती है। जब मुरझाई हुई उंगलियां माथे को सहलाती है।