स्टील ऑथोरिटी ऑफ़ इंडिया, भिलाई संयंत्र में कार्यरत। संयंत्र के हिंदी राज्य-भाषा अनुभाग के कार्यक्रम एवं दुर्ग जिला कलमकार मंच, छत्तीसगढ़ का साहित्यिक सदस्य। सामाजिक कुरीतियों पर व्यंग्य करने की कला। रोमांस, प्राकृति प्रेमी, साहित्य प्रेमी।
Share with friends“ सबकुछ बना लेना लेकिन कागज के पेड़ न बनाना और अगर बन भी जाए तो उससे बढ़ने, खिलने और फलने की उम्मीद न पालना ”
दीवारें रंगने चलता हूं तो पहले से पड़ी सीलन, टूटन और दरारों को भरना पड़ता है! लोग कहते है नई दीवार! लेकिन नई दीवार पर पुरानी छाप मुझे स्पष्ट दिखाई देती है!”
इश्क़ सबसे पहले शब्दों को शहीद करता है! या तो आप मुस्कुरा सकते हैं या रो कर अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकते हैं! जुबान अपने आप बोलना बंद कर देती है!