#परिवार
ममता की छत और जीवन मूल्यो की फ़र्श
फिर बनता है खिलखिलाता अखंड परिवार
-मुक्ता
#सखी
हे री सखी अब बारी संग्राम की है
हर नज़र को नोच ले जो ग़ुस्ताख़ है
-मुक्ता
#बिन फेरे हम तेरे
रहे जुड़े हम दोनो एक नाज़ुक डोर से,
ना बँध पाए कभी मज़बूत गठजोड़ से,
फिर भी मन के प्यारे कोने में हो बसे ,
तुम और सिर्फ़ तुम ।
-मुक्ता
बहा डालों हर अहं , क्रोध को और
प्रफुल्लित करो प्यार सद्भाव को
फिर होगा सही तर्पण फलगु की घाट पर !