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कितनी मरीचिकाओं से घिरी मैं ख़ुद को ख़ुद में ढूँढा करती मैं कितने अलग से निरपेक्ष से तुम मुझ में रह क... कितनी मरीचिकाओं से घिरी मैं ख़ुद को ख़ुद में ढूँढा करती मैं कितने अलग से निरपेक्ष...
रौशनी बिखेरी है, सूरज भी पूरा हैचाँदनी भी आती है, और चाँद पूरा है पर नहीं मैं अकेली नहीं बस तन्हा हू... रौशनी बिखेरी है, सूरज भी पूरा हैचाँदनी भी आती है, और चाँद पूरा है पर नहीं मैं अक...