खाक़ पर कदमों के निशान जो बिछा गए अपनी पहचान, लागत में कुर्बानियों की कलित कहानियाँ, तुम्हारे एक फैसले पर निर्भर है। -मोनिका शर्मा
एक शाम रस्ते पर खड़ी मैं यह सोचती हूँ, 'मंजिल कितनी दूर है?' ये पेड़ स्थायी मुझ पथिक को आराम पूछते हैं, अब इन्हें कौन बताये हम सफर पर निकले है ठहरने नहीं । - मोनिका शर्मा