हम गुम हो गये,
आधुनिकता के मस्ती में
अब कहाँ मिलता है,
सावन के झूले बस्ती में
प्यार किया था तुझ से
ये कोई खेल नहीं था
तुम्हारे सिवा किसी और से
कोई मेल नहीं था
ईश्क करना अब छोड़ दिया है
तेरी गली में जाना छोड़ दिया है
अब सीख लिएं है तन्हा रहना
तेरी पहचानों को तोड़ दिया है
तुझ से बिछड़ कर ना रोऊँगा, क्योकि
गमों को तेरे पास ही छोड़ दिया है
मग्न रहता हूँ अपनी धुन में, क्योकि
खुद को खुद से जोड़ दिया है
विरह जुदाई की सहुँ कैसे
तेरे बिन अब मै रहूँ कैसे
जब आई थी मेरे जीवन में
खिला था चेहरा फूल जैसे
पुकारता रहा उसे हर पल
ओ नजरे चुरा के चले गए
पहले मिलती थी रोज वो
कोरोना ने दूज का चाँद बना दिया
ये शाम की लालिमा
कितनी सुहानी है
प्रकृति का ये दृश्य
सबको बनाई दिवानी है
जो गुस्सा भी करे तो
उसके गुस्से में प्यार का
एहसास होता है
ओ कोई और नहीं
ओ माँ होती हैं
ऋणी हूं मैं मां का
जिसने मुझे दुनिया में लाया ।
जिसने ममता के आंचल में सुलाया,
जिसने बोलना, चलना सिखाया ।।