कुछ कसमे वादे हम तुम भूल जाते है जरुर.. उंगलियों में थमी उंगलियां याद रह जाती है.. टूट गये वादे झूठी हुई कसमे कोई हालात होंगे मगर ये यादें ना झूठ होती है ना टूट जाती है..
कागजों को तलब है स्याही की.. मेरे अश्क़ मगर पन्नो को भीगाते है.. कुछ अल्फाज़ बने तो पढ़े जायेंगे.. बाकी बचे अश्क़ कहाँ हाथ आते है.
बस उतना ही लिख पाती हूँ.. जितना आँखों से बह जाता है.. तमाम दर्द है दिल में बर्फ सा.. आँखों तक नहीं पहुंच पाता है..
उठा के रख लिया है तुम्हारा बोसा.. मैंने अपने माथे से.. अपनी किताब के इक पन्ने पर.. अब रोज रोज श्रृंगार होगा जिससे मेरी कविताओं का!!