@ajay-amitabh-suman

AJAY AMITABH SUMAN
Literary General
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अजय अमिताभ सुमन: Advocate, High Court of Delhi Mob: 9990389539 E-Mail: ajayamitabh7@gmail.com Listen My Poem at https://www.youtube.com/channel/UCCXmBOy1CTtufEuEMMm6ogQ?view_as=subscriber दिल्ली हाई कोर्ट में पिछले एक दशक से ज्यादा समय से बौद्धिक संपदा विषयक क्षेत्र में वकालत जारी। अनगिनत... Read more

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When you wear white with pride, Life—and tea—will test you.

When you wear white with pride, Life—and tea—will test you.

मृतशेष या मर जाये या मारे चित्त,में कर के ये दृढ निश्चय, शत्रु शिविर को जो चलता हो ,हार फले कि या हो जय। समरअग्नि अति चंड प्रलय हो,सर्वनाश हीं रण में तय हो, तरुण बुढ़ापा ,युवा हीं वय हो ,फिर भी मन से रहे अभय जो। ऐसे युद्धक अरिसिंधु में , मिटकर भी सविशेष रहे। जग में उनके अवशेष रहे ,शूर मृत होकर मृतशेष रहे। अजय अमिताभ सुमन

बिन बोले सुन पाता कौन? जो प्यासा पानी को कहता ,अक्सर उसकी प्यास मिटी है, जो निज हालत रोता रहता, कबतक उसकी सांस टिकी है? बिना जुबां कटते जीव जंतु, छंट जाते सब पादप तंतु। कहने वाले की सब सुनते, गूंगे चुप रह जाते मौन। न्याय मिले क्या हक़ ना मांगो,बिन बोले सुन पाता कौन? अजय अमिताभ सुमन

चिंगारी बन लड़ा नहीं जो चिंगारी बन लड़ा नहीं जो, उसने कब इतिहास लिखा है? अंधेरों में जला नहीं जो, उससे कब  प्रकाश खिला है? किसी फूल के रसिया को, शुलों से नफरत नहीं चलेगा, धूप छाँव पानी से बचकर, ना अड़हुल पर कुसुम खिलेगा। ग्रीष्म मेघ वृष्टि बरखा से,जो भिड़ते गाथा रचते, शीत ताप से जो बच रहते ,उनको कब मधुमास दिखा है? चिंगारी बन लड़ा नहीं जो, उसने कब इतिहास लिखा है? अजय अमिताभ सुमन

आइन-ए-अल्फाज यहाँ कत्ल नहीं देखते, देखे जाते इरादे, आइन-ए-अल्फाज के ,हालात ही कुछ ऐसे हैं। बेखौफ घूमती हैं कातिल,तो मैं भी क्या करुँ, कोर्ट की जुबानी,बयानात ही कुछ ऐसे हैं। तारीख दर तारीख फकत मिलती तारीख हीं, अंधे हाकिम के, खैरात हीं कुछ ऐसे है। फरियाद लेकर अपनी ,जाएँ भी तो जाएँ किधर, अल्लाह भी बेजुबां है, सवालात ही कुछ ऐसे हैं। अजय अमिताभ सुमन

बाजार झूठ के बाजार में मिला नहीं, माजरा क्या है, तू हिला नहीं। अजय अमिताभ सुमन

सत्य भाषण सत्य भाष पर जब भी मानव, देता रहता अतुलित जोर। समझो मिथ्या हुई है हावी, और हुआ है सत कमजोर। अजय अमिताभ सुमन

मन खुद को जब खंगाला मैंने, क्या बोलूँ क्या पाया मैंने? अति कठिन है मित्र तथ्य वो, बामुश्किल ही मैं कहता हूँ, हौले कविता मैं गढ़ता हूँ, हौले कविता मैं गढ़ता हूँ।


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