माता-पिता की यादें वो आईना हैं,
जिसमें हर बार अपना बचपन नज़र आ जाता है।
हर एक उम्मीद पर उम्मीदवारी सदैव पुरुष की होती है
वह बढ़ चढ़कर अपना हिस्सा मुकर्रर करता है
जीता है जागता है
और अपने पुरुषार्थ के बल पर सत्ताविहीन नारी को अपने आगोश में जकड़ता है।।।
अपने बौद्धिक विचारों को बेनकाब कर रही स्त्री अपने ही सुखों को समेट नहीं पाती है।।।
मैं चिट्ठियों के सिलसिले को कब तक चलाऊं
कभी तो मैं उन्हें आँख भर कर देख पाऊं...
दर्द बहुत हुआ तुमसे जुदाई का अब आलम शेरो तरीक़ है...
खुद को इतना भी साबित मत करो
कि सब आपसे दूर चले जाए
"बेटियां" अक्सर बहुत कुछ सह जाती है
पर किसी से कुछ कह नहीं पाती...🙁🙁
किसी के प्रति आकर्षण इतना भी न हो कि
*उसके दोष ही न देख पाएँ
*और.......*
नफरत भी इतनी न करें कि
उसके गुण भी न देख पाएँ......।।
कैसे हम खुशियों को जोड़कर
दुखों को अपने जीवन से घटाए
यह हमें गणित नहीं सिखाता
बल्कि गणित हमें यह अवश्य सीख देता है
कि सभी समस्याओं का हल है।।।