मंजिले धुंधली हो गई है, रास्ते अनजाने हो गए है, अब यह बस चारो ओर अंधेरा है जिससे मै वाकिफ हूं, मै भटका सा मुसाफिर हूं।
हम तो इश्क़ के रंग में रंगे थे, इश्क़ की नाज़ुक डोर से बंधे थे , इश्क़ में उसने चाल ऐसी चली चारो खाने चित , यह बाजी हम हार चुके थे
After losing my life in pens and papers, Characters and stories, Words and poems, You and your memory I think, I should move on.