सुनो सच के मसीहाओं आज जो ये तुमने सच की ढ़ाल पहन रखी है ना। इसे ही तुमने बहूत पहले अपनी तलवारें बना रखी थी।
वैसे आपका ख़ामोश रहकर, दिल मे बहूत कुछ रखकर, चेहरे पर कुछ भी नही झलकने देना भी, तुम्हारी सबसे बड़ी कला है।
तुम्हारी चतुराइयों के बाज़ार में हम इस तरह नीलाम हुए हैं,साहब। की हम बिकना भी चाहे तो बिना बोली लगाए ही बिक जाते है।
कुछ राजशाही तरीके होते है सभी के, अपने - अपने, अपनी ज़िन्दगी जीने के। लेकिन घर की जिम्मेदारीयां और व्यक्ति की मजबुरियाँ सब पर इन सब पर पानी फेर देते है।