Brijlala Rohan
Literary General
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हिंंदी साहित्य सेवी, सामाजिक कार्यकर्ता, युवा वक्ता ,कवि , शायर, लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर सह भारतीय संस्कृति के हिमायती स्वतंत्र गांधीवादी विचारक एवं अध्येता वर्तमान में हिंदू महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय )स्नातक हिंदी (प्रतिष्ठा)प्रथम वर्ष में अध्ययनरत ❣️🖊📜🎙🇮🇳💐❣️🥰

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जब जब ईद आती है, मुझे प्रेमचंद विरचित *ईदगाह* कहानी याद आती है ! याद आता है हामिद , उसके बाल मन का बड़प्पन! गुरबत की मारी उसकी बुढ़िया अम्मा! याद आता है हामिद का नायाब *चिमटा* , जो सब खिलौने पर भारी होता है! और इस तरह मैं मना लेता हूं ईद! प्रेषित कर देता हूं ईदी आज के हामिद को...! याद कर लेता हूं अपने पुरखे प्रेमचंद जी को... और बुढ़िया अम्मा की भाँति नम हो जाती है मेरी आंखें ..!

जब जब ईद आती है, मुझे प्रेमचंद विरचित *ईदगाह* कहानी याद आती है ! याद आता है हामिद , उसके बाल मन का बड़प्पन! गुरबत की मारी उसकी बुढ़िया अम्मा! याद आता है हामिद का नायाब *चिमटा* , जो सब खिलौने पर भारी होता है! और इस तरह मैं मना लेता हूं ईद! प्रेषित कर देता हूं ईदी आज के हामिद को...! याद कर लेता हूं अपने पुरखे प्रेमचंद जी को... और बुढ़िया अम्मा की भाँति नम हो जाती है मेरी आंखें ..!

मंगलमय हो आप सभी को नूतन नववर्ष सदैव पुलकित रहें , जीवन में हो उत्तरोत्तर उत्कर्ष 💖🥰

मुश्किल होता है अकस्मात परिवर्तन को झेलना, मुश्किल होता है उसे समझ पाना, जबतक आप समझ पाते हैं तबतक चीजें बहुत आगे निकल चुकी होती है तब मुश्किल होता है खुद को यकीन दिलाना , पर, परिवर्तन ही तो जीवन का नियम है। वक्त लगेगा मगर आ ही जाएगा इनको स्वीकार कर जीना

लद्दाख के अक्षुण्ण अस्तित्व हेतु वह सत्याग्रही अड़ा है! इक्कीस दिन तक अन्न का त्याग कर वह लोकतंत्र के लिए लड़ा है, लद्दाख की पर्यावरणीय स्थिति, सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण हेतु आज पूरा देश उसके साथ खड़ा है। मगर निरंकुश सत्ता को आज तक कान में जूं तक नहीं पड़ा है ! हर दिन अपने वीडियो संदेश में उनके वादों की याद दिलाता, माँ भारती का सुपुत्र वह उनके मुकर जाने की दुहाई बतलाता ! बापू के सत्याग्रह

लद्दाख के अक्षुण्ण अस्तित्व हेतु वह सत्याग्रही अड़ा है! इक्कीस दिन तक अन्न का त्याग कर वह लोकतंत्र के लिए लड़ा है, लद्दाख की पर्यावरणीय स्थिति, सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण हेतु आज पूरा देश उसके साथ खड़ा है। मगर निरंकुश सत्ता को आज तक कान में जूं तक नहीं पड़ा है ! हर दिन अपने वीडियो संदेश में उनके वादों की याद दिलाता, माँ भारती का सुपुत्र वह उनके मुकर जाने की दुहाई बतलाता ! बापू के सत्याग्रह

मेरी बंजर भूमि में बहने वाली मात्र एक सरिता हो तुम ! मैंने लिखा जो अपने लिए सबसे सुंदर कविता हो तुम

17 सालों के चीर प्रतीक्षा के बाद आज स्वर्ण घड़ी वह आई है , जब *RCB* नाम की कोई टीम भी ट्रॉफी पर कब्जा जमाई है, लड़के मंज़िल तक पहुंच पहुंच पग दो पग अब तक लड़खड़ाते आए , पर बेटियों ने इतिहास रच इस सिलसिले को की धराशायी है, अपने जज्बे जुनून से बेटियाँ हमारी खिताब जीत घर लाई है। मंदाना की कप्तानी,विकेट के पीछे डटकर खड़ी है रिचा गिल्लियां बिखेर दी विपक्षियों के सोफी ,आशा और श्रेयांका

तन को ढंकने के लिए मनुष्य ने  धीरे-धीरे वल्कल से होते हुए वस्त्र को खोजा,  और जब उसने तन को पूरी तरह ढंकना सीख लिया तो कुछ सभ्य और आधुनिक कहलाया !   और अब जब मनुष्य आधुनिकता के शिखर पर था ; तब मनुष्य और आधुनिक कहलाने के लिए एक -एक करके वस्त्रों का परित्याग कर रहा है!  यह सभ्यता का चरमोत्कर्ष है या चरमराती आधुनिकता का विमर्श ? ~@Brij


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