आस को चाहे जैसे भी दफनाओ वो ज़िंदा रहती है
ख्वाहिशें कभी मरती नहीं, बस खामोश हो जाती हैं
वक़्त वही, उसकी रफ़्तार, वही
किसीका ग़लत, तो किसीका सही
किसीका बीत जाए, तेजी से
और किसीका, बीते ही नहीं
कोई चूक जाए वक़्त अपना
किसीका वक़्त, आए ही नहीं
कोई कहता, वो है महेरबान
कोई कहता मुझ पर, रहेम नहीं
कोई बांटें वक़्त, सब के साथ
कोई खुद के साथ
उस गुनाह का इलज़ाम है मुझ पर...
जिसकी सज़ा भी नहीं मिलती
जिस से बरी भी नहीं होता, मैं
अब का ज़माना है शोर और शोहरत का
खामोश सदाएं अब वो असर नहीं रखती