मै वसुकार सद्कवि हूं मानवता का बस.... मानवता को प्रतिष्ठित करना ही मेरे जीवन का ध्येय है। *** प्रेमदास वसु सुरेखा ***
Share with friendsपोत लिया हमने अपने ही शरीर को क्यों क्योंकि रब ने नहीं पोता था जुल्फे बढ़ाई हमने क्यों क्योंकि जुल्फे नहीं थी
इस जगत् में कौन किसको बढ़ने देता इस जगत् में कौन अपना पराया होता इस जगत् में एक है जो सबका होता शिक्षक ही जीवन का तारणहार होता
ऐ वसुत्व अर्ज किया है.... वक्त का समन्दर थमने ना देंगे खुशियां लौट जाये ये होने ना देंगे ऐ वसुत्व के रखवाले नर सुरेखात्व को वसुत्व से जुद़ा ना होने देंगे ****सद्कवि प्रेमदास वसु सुरेखा****