पोत लिया हमने अपने ही शरीर को क्यों
क्योंकि
रब ने नहीं पोता था
जुल्फे बढ़ाई हमने
क्यों
क्योंकि जुल्फे नहीं थी
कौन किसको, क्या बतलाए
चारों ओर दिखाई धोखा है
बात नहीं यह और नयी है
बस समझ से समझाई है।
महान् वह नहीं जिसमें शक्ति का बवंडर छुपा हो
महान् वह है जो शक्ति के बेगर इंसानियत को स्थापित करें
चल पथ पर ऐसे जोड़ों को
यूं ही तोड़ दो
मोड़ दो
मरोड़ दो
और चल पथ पर
ऐसे जोड़ों को
प्रेम ही शानदार
अभिव्यक्ति है सद्कर्मों की
इस जगत् में कौन किसको बढ़ने देता
इस जगत् में कौन अपना पराया होता
इस जगत् में एक है जो सबका होता
शिक्षक ही जीवन का तारणहार होता
दरिया बहता है पानी का
हर कोई है नहाता है
वक्त समय पर मिल गया जिसको
वो ही फिर उज्ज्वल है।
ऐ वसुत्व अर्ज किया है....
वक्त का समन्दर थमने ना देंगे
खुशियां लौट जाये ये होने ना देंगे
ऐ वसुत्व के रखवाले नर
सुरेखात्व को वसुत्व से जुद़ा ना होने देंगे
****सद्कवि प्रेमदास वसु सुरेखा****
मैं जितना खतरनाक है
उतना ही लोभ खतरनाक है।