चीर करके आसमां को बर्क़ अब गिर जाएगी
जिस घड़ी ये आह अर्श-ए-बरी से टकराएगी..
~आरफील
हो गया है घुप अंधेरा
इस रात से घबराओ मत
जुगनुओं की शान भी
बढ़ती है काली रात में
~आरफ़ील
तुम ज़रा सी ठोकरों से
लड़खड़ाने हो लगे
बन जा नदियों की वो धारा
जो पत्थरों को चीर दे
~आरफ़ील
तन्हाई मेरे साथ अब हुजरे में रहती है
न मैं कुछ कहता हूँ न वो कुछ कहती है
~आरफ़ील
जैसे जैसे अँधेरा गहराता गया
वो शख़्स दिल में समाता गया..
~आरफ़ील
आज़माइशों के बिना इंसान वैसा ही है जैसे रात के बग़ैर जुगनू
~आरफ़ील