अब लोग कहाँ मुझे मेरे धर्म से जानते हैं एक देश को मानता हूँ मैं केवल मुझे बस भारतीय के नाम से जानते हैं । #गुजारिश
“ चलों ना लोगों को एक सौग़ात देते हैं । आँखों में चमक, होंठों पर मुस्कान देते हैं । यूँ तो हार जाते हैं, अक्सर ज़िंदगी से लोग पर जो रखते हैं जज़्बा, उन्हें प्यार भरा पैग़ाम देते हैं । मनीषा सिन्हा
चलों ना लोगों को एक सौग़ात देते हैं । आँखों में चमक, होंठों पर मुस्कान देते हैं । यूँ तो हार जाते हैं, अक्सर ज़िंदगी से लोग पर जो रखते हैं जज़्बा, उन्हें प्यार भरा पैग़ाम देते हैं । मनीषा सिन्हा
भिन्न- भिन्न भाषा का देश यह भारत सबकी अलग -अलग सी बोली है । पर जो रंगता है हमको एक रंग में वह भाषा तो बस हिन्दी है । मनीषा सिन्हा
अभी तो थोड़ी धुँध छटी है अभी तो ज़रा रोशनी आई है मंज़िल बेशक दूर सही पर राहें तो हल्की नज़र आई है । मनीषा सिन्हा
सात फेरों के वचन मैं तुमको याद दिला दूँ भी तो क्या आँसू से लिखे हुए ख़त को भिजवा दूँ , तुम तक भी तो क्या खबर मुझे है, तुम हर हाल में भारत माँ के ही वचन निभाओगे फिर भी सब अनदेखा कर दिल के राज बताती रहतीं हूँ हर रोज़ तुम्हें मैं ख़त लिखती हूँ।
यूँ मज़हब में ना बाँटों हमको एक धर्म तिरंगा रहने दो। वीरों के खून से लथपथ है ये बस इसकी इबादत करने दो। मनीषा सिन्हा
फूट डालो और राज करो ये इजाज़त आख़िर कब तक देंगे । जातिवाद के नाम पर हम देश कब तक बँटने देंगे । तीन रंग से बना यह 🇮🇳 भारत गगन और धरती सी इसमें ताक़त है। किसी एक रंग की बात कर इसकी ताक़त कब तक घटने देंगे । मनीषा सिन्हा
ए बादल तू आज देर तक बरसना । बड़े मुद्दत के बाद सारे दोस्त मिले हैं। गरम चाय की प्याली संग , लड़ी लगी है बातों की , जज़्बातों को जैसे पंख से लगे हैं। बातों की गरमाहट संग , चाय का उठता धुआँ, बारिश के संग मिलकर दिल के साज़ छेड़ गए है। ए बादल तू आज ज़ोर से बरसना बड़े अरसे बाद चाय पर दोस्त मिलें हैं। मनीषा सिन्हा