Parul Manchanda
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“चलता जा राही तेरा मंजर अभी आता ही होगा।” कुछ शब्द हमारे जीवन के अंतःकरण में रंग घोल देते है। ऐसे ही चंद शब्द है ये.. जीवन के उतार चढ़ाव में मुझे लिखने की प्रेरणा देते रहे है! कविताएँ सिर्फ़ जुमला नहीं होती शब्दों का … ये भावो का वो स्रोत होती है जिसे कलम में पिरोने की कोशिश की जाती है। इसी आशा... Read more

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हो पिता गुरु जैसे तो खोटी नीयत किस काम की ! है खून रगो में उनका जो ना बोला तो बेटी किस काम की!

मानो तो संभावना ना मानो तो ख़ाक करींन हूँ मैं मानो तो उम्मीद ना मानो तो दो गज मिट्टी ज़मीन हूँ मैं

हो कविता अच्छी तो दाद और ताली की परवाह नहीं करते हो महाब्बत कैसी भी अपनी होती है बदनाम किया नहीं करते

सजदे में सिर जो झुका रहा उसे मुसाफ़िर क्यूँ तोल गया ! जो ज़मीर में था ही नहीं मेरे, उसे मेरा लहज़ा क्यूँ बोल गया !!

हम कुछ सुनाये और आप सुने ऐसी तो हम में कोई बात नहीं राहे गुज़र है सभी कहा जा चुका सब कुछ अब और कोई बात नहीं मंज़िल की तलाश तुमको भी है हमको भी राह ख़ुद बनानी पड़ेगी , भूल है वहाँ कोई महताब नहीं!

हो कविता अच्छी तो दाद और ताली की परवाह नहीं करते हो महाब्बत कैसी भी अपनी होती है बदनाम किया नहीं करते

उनकी आँखें बोल जाती थी….. महफ़िल में के प्यार उनको अब भी है! आँखों पर पहरा लगाया हमने और अब ख़ुद से पूछते है क्या प्यार अब भी है ?

कहाँ है प्रीत अब किसको गुहार दू? कृष्ण मन हो मेरा मैं राधा शृंगार दू!

शब्द से शब्द जुड़ते चले शैली हो गई। ना बिकने वाली शय अब कैली हो गई। इम्तिहान इतने लिए ज़िंदगी ने ‘अक्स’ कोरी-सी ओढ़नी मेरी मैली हो गई।


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