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नहीं निकला मेरी गली में किसी उन्मत में चूर होगा वो भी कहीं किसी की मुहब्बत में ज़रूर होगा चांद को बैरी, कैसे कोई कहे उसपे भी चांदनी का छाया सुरूर होगा