अभी समय भी नही थकी सोइ है मेरी मौन व्यथा।
जज़्बात मेरा आईने के दायरे से फट पड़ा, लेकर शिला का खंड मैं उस आईने से फिर लड़ा। जज़्बात मेरा आईने के दायरे से फट पड़ा, लेकर शिला का खंड मैं उस आईने से फिर लड़ा।