मत देख मेरे चेहरे के खिलते तबस्सुम
कितने ग़मों की आशनाई से सजाई है महफ़िल
यूँ ही कोई याद करवट बदल गयी
दिल की लगी थी शब्दों में ढल गयी
रोते हैं तेरे दीवाने फफक फफक कर
क्या तुम भी याद करते हो कभी हुलसकर
जिसको जिसका दिलबर लूटे
वो फिर किस दरिया में डूबे
ले छोड़ दी तेरी महफ़िल और तुझे भी ...
मुकम्मल ज़िन्दगी भला कौन जी पाया यहाँ
ये मेरा दर्द था मेरे आँसू और मेरी मोहब्बत
इकतरफा मोहब्बत में कैसा गिला कैसी शिकायत
सिलवटों की सिहरन ने सिहरा दिया
कुछ ज़ख्म बचे थे जगमगा दिया
तडप के निकलता है जो
उसे लोग चाँद कहते हैं
दर्द से निखरा है जो
उसे लोग दाग कहते हैं
ये तेरी मोहब्बत के हैं निशाँ
जिसे लोग आग कहते हैं
मुलाकातों का सिलसिला चलता रहे
बस इक नज़र भर तू हमें मिलता रहे
ज़िन्दगी यूँ ही गुजर जायेगी
फासलों से ही सही , साथ चलता रहे