Vijay Kumar
Literary Colonel
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विजय कुमार टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड. शिक्षा : एम. कॉम और एम. ए. पसंद – कविताएं लिखना, पढ़ना, घूमना, और कुकिंग प्रकाशित कृतियां – 1– मेरे विचारों का काव्य रुप (एकल काव्य संग्रह) 2 –कवि की कल्पना कलम से पन्नों तक – साझा काव्य संग्रह 3 – माता –पिता – साझा काव्य संकलन आने वाली कृति – सोच से शब्द रूप... Read more

বন্ধুদের সাথে ভাগাভাগি করা

एक रात के इंतजार में हम पल – पल वक्त बिताते है, अधूरे रह गए उन सपनों को अब नींद के बहाने भुलाते है।

हर मांग में भरा सिंदूर जीवन का सच नहीं दिखाता, कुछ दिलो के खालीपन को वो कभी दूर नहीं करता।

बिन तेरे यूँ तो हम अधूरे नहीं है... पर जाने फिर भी क्यूँ हम पूरे नहीं है।

जिंदगी रूकी पड़ी है बहुत मुश्किल की यह घड़ी है सांसों की कीमत पूछो उस इंसान से जिसकी सांसे उखड़ी पड़ी हैं सोचा ना था कि इक दिन ऐसा भी आएगा एक-एक सांस लेने के लिए पैसा भी काम ना आएगा।

खुशबू कि तरह मेरी हर सांस में प्यार अपना बसाने का वादा करो.. रंग जितनी तुम्हारी मोहब्बत के है मेरे दिल में सजाने का वादा करो.

ससुराल में हर किसी ने पूछा कि बहू क्या लाई.. पर किसी ने ये नहीं पूछा कि बेटी पीछे क्या छोड़ आई..

कभी तुम पूछ लेना कभी हम भी जिक्र कर लेंगे छुपाकर दिल के दर्द को एक-दूसरे की फिक्र कर लेंगे

अबकी बार दुआ हम साथ-साथ कर लेंगे.. दोनों मिलकर एक-दूसरे को मांग लेंगे..

तकदीर बनाने वाले तूने भी हद कर दी.. तकदीर में नाम किसी और का और दिल में चाहत किसी और की भर दी.


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