ज़मीर बेचने वाले अब कहाँ शर्मिंदा हैं
इंसानियत दिखाने वाले अब चुनिंदा हैं
तूने मुझे, इस कद्र तंग किया
दंग रह गयी, मैं यह सोच कर
मैंने तुझे, क्यूँ इतना पसंद किया
रेनू पोद्दार
कोई तो पाठशाला ऐसी होती जहाँ चेहरा पढ़ना सिखाते
उम्र सिर्फ लोगों को समझने में ही बीती जा रही है
रेनू पोद्दार
ख़राब समय में अपने माझी स्वयं बनिये
दुनिया तो आपको मझधार में छोड़कर मुंह मोड़ लेगी
रेनू पोद्दार
थोड़ी तो मोहलत, दे ऐ ज़िन्दगी
कुछ अधूरे ख़्वाब अभी बाकी हैं
तेरा अंत जब आयेगा बता कर नहीं आयेगा
जोड़ा हुआ कुछ साथ नहीं जायेगा
कर्मों का लेखा-जोखा ही बस साथ तू ले जायेगा
कुछ कर गुज़रने का हौसला कभी ना छोड़ना
छोड़ दो बढ़ती हुई उम्र कर ज़िक्र करना