हवा के रंग उड़ा दूं,
या आसमां झुका दूं,
फिर सोचा कोई है ही नहीं,
तो किस लिए ये आफत मचा दूं।
हवा के रंग उड़ा दूं,
या आसमां झुका दूं,
फिर सोचा कोई है ही नहीं,
तो किस लिए ये आफत मचा दूं।
निकम्मे है नहीं,
ना होना पसंद है,
बात जब देश की है,
तो इक्कीस दिन भी कम है।
निकम्मे है नहीं,
ना होना पसंद है,
बात जब देश की है,
तो इक्कीस दिन भी कम है।