DEVSHREE PAREEK
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व्यर्थ विवाद, हृदय की व्यथा का विस्तार करता है.... परन्तु व्यर्थ मौन नि:संदेह जीवनभर के पश्चाताप का कारण बनता है। उचित समय की प्रतिक्षा करने के स्थान पर, समय को उचित बनाने का प्रयास करना चाहिए। नियति के भरोसे से नहीं, नियत पर भरोसा करने से लक्ष्य की प्राप्ति होती है। -✍️ देवश्री पारीक 'अर्पिता

माँ… क्यूँ ना उसके सजदे में, सिर हर रोज झुकाऊँ… लब जिसके, दुआ करते हैं, मैं जब तक लौट के ना आऊँ… -✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’

वास्ता… तुम्हारा और मेरा, कुछ ऐसा है वास्ता जैसे किसी नशेड़ी का, एनसीबी से हो रिश्ता…

इश्क़… यें बहारें इश्क है जाना इन पर ना यक़ीन कर, नई रुत के आने पर इनका बदलना तो तय है… -देवश्री पारीक ‘अर्पिता’

मनाने की बारी… चूँकि रिश्ता निभाने की, ज़िम्मेदारी मेरी है ज़ाहिर है हर बार, तुम्हें मनाने की बारी मेरी है… जिस दिन, मैंने मनाना छोड़ दिया तुमनें एक पल में, रिश्ता तोड़ दिया… ✍️देवश्री पारीक 'अर्पिता '

ऊपरवाला… मंदिरों में फूल चढ़ाओ चाहे मज़ारों पर माला गर बाँट सको दर्द किसी का तो खुश होगा ऊपरवाला -✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’

Rudeness… of your "innocence" What's wrong now… 'Berukhi' is also yours What is this less… -✍️Devshree Pareek 'Arpita' ©®

Realm… 'You from me to alphas to bind within don't insist after a long silence with great difficulty The mouth has been opened…. - ️Devshree Pareek 'Arpita' ©®

Rudeness… of your "innocence" What's wrong now… 'Berukhi' is also yours What is this less… -✍️Devshree Pareek 'Arpita' ©®


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