जानते न कोणी भविष्य कोणी मानते न स्वचुक... होतात सारे कर्तव्य विन्मुख... अन पदरी पडते नुसते सुखदु:ख...
कोई रहेने लगा है दिल में अजांन या, है कोई पड़ोसी...? अब किस्मत भी मेरी उसे जानने लगी है जरा जराशी...
प्यास दिलों को लगी है... होटों को भी चाहत जगी है... आहट नजरों को भी समझी है... ये रिश्ता भी अजब सा बना है...