मुस्कुराहट नहीं रुकती उनके आँगन में
जेबें जिनकी फ़टी हुई होती हैं
जानती हूँ मानोगे नहीं शायद
पर आज भी तेरी धड़कन में
दिल मेरा धड़कता है
हौसलों को मत कतरने दो
ये पंख नहीं जो आ जायँगे फिर
पल पल हार जीत का मेला है
भागता दौड़ता से ये रेला है
कौन कहता है ज़िन्दगी खेल नहीं
कभी तू भीड़ में कभी अकेला है
मत सोच लेना
दिल पत्थर का है उनका
क्योंकि लड़के रोते नहीं
मन की परतें जो जुड़ गयीं
क्या सिंदूर क्या फेरे
तुम मेरे हम तेरे
कब तक हाथ तुम्हारे होगी
मेरे अस्तित्व की डोर
कठपुतली नहीं
मैं भी एक इंसान हूँ
मेरे खून के कतरे कतरे से सज़ा है महल तेरा
फिर भी इस आँगन की मैं कोई नहीं
तेरे पैमानों से नहीं है वज़ूद मेरा
मत सोचना आग में उतर जाऊँगी