Rajeev Kumar Srivastava
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ये नसीब ही है साहब, जो अपनी होकर भी गैरों जैसा सलुक करती है।

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ये दुनिया, सिखाती है, रुलाती है, और सुलाती भी है साहब। नसीब अपना अपने हाथ की लकीरों में है, जिसने समझ लिया उसने जीना सीख लिया।

कर्म करते रहो बालक फल की चिंता किए बिना मिलेगा वही जीतना लिखा होगा किस्मत में तुम्हारे


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