SHRADDHA SINGH
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ज़िन्दगी में हो कर भी जिंदगी ना जिए। लगता है , जनाब अवसाद के घूट पिए जा रहे ।

ज़िन्दगी में हो कर भी जिंदगी ना जिए। लगता है , जनाब अवसाद के घूट पिए जा रहे ।

ज़िन्दगी में हो कर भी जिंदगी ना जिए। लगता है , जनाब अवसाद के घूट पिए जा रहे ।

लिबाज में लिपटी लाश हुईं जा रही हो। बेटा क्या हो गया ,तुम तो अभी से सास हुईं जा रही हो।

कि ताल्लुक नहीं उनका हमसे कुछ , फिर भी रातों में बेवजह ही तकिए गीले किए जा रहे है।

अनायास ही , वो खास हो गया।

जान से अनजान बनते देर नही लगती।

जिन्दगी आपके मजे ले, इससे अच्छा आप जिन्दगी के मजे ले लो।

दो पहर तक जी लेने दो मुझे, दोपहर तक नहीं।


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