किताब अगर बोलती, .तो शायद शिकायत भी करती.. “तुमने मुझे अलमारी में कैद कर दिया, मोबाइल स्क्रीन पर फिसलती उंगलियों ने मुझे भुला दिया। मैं तो वो दरवाज़ा थी, जो तुम्हें समय, सभ्यता और संस्कारों की यात्रा पर ले जाती।”
अगर किताब बोलती📚📖 .........................वो कहती… “मैंने वर्षों तक इंतज़ार किया है। तुम्हारे छूने की, तुम्हारे पलटने की, तुम्हारे समझने की। मैं केवल काग़ज़ और स्याही नहीं हूँ, मैं वो ख़ामोश हमराज़ हूँ, जो तुम्हारे अकेलेपन में साथ निभाती हूँ।”
किताब अगर बोलती, .तो शायद शिकायत भी करती.. “तुमने मुझे अलमारी में कैद कर दिया, मोबाइल स्क्रीन पर फिसलती उंगलियों ने मुझे भुला दिया। मैं तो वो दरवाज़ा थी, जो तुम्हें समय, सभ्यता और संस्कारों की यात्रा पर ले जाती।”
अगर किताब बोलती📚📖 .........................वो कहती… “मैंने वर्षों तक इंतज़ार किया है। तुम्हारे छूने की, तुम्हारे पलटने की, तुम्हारे समझने की। मैं केवल काग़ज़ और स्याही नहीं हूँ, मैं वो ख़ामोश हमराज़ हूँ, जो तुम्हारे अकेलेपन में साथ निभाती हूँ।”