तेरी आँखों के दो मयखाने
भर देते मेरी यादों के पैमाने
नरेंद्र आरव
मेरे शब्द ही मेरा दर्पण हैं
ये सब तुझको ही अर्पण हैं।।
नरेंद्र आरव
दो
लफ्ज
बोल कर
प्यार के हम
अपनों से गैर हो गए।
नरेंद्र आरव
दोनों तरफ से बंद थे
दिलों के दरवाजे
फिर भी कहीं से
रिस रहा था
बूंद बूंद इश्क
नरेंद्र आरव