I'm ER SIDDHARTH and I love to read StoryMirror contents.
Share with friendsअमावस की रात में अकेले हम ना थे । ये उनका भ्रम था कि उनके दीवाने हम थे ।। सिद्धार्थ यादव (सिद्धार्थ के अल्फाज़)
मोहतरमा दिन गुजर गए रात गुजर गई यूं ही सारी उम्र गुजर गई तेरे लबों पे बात थी ना जाने कब वो जिन्दगी की सार बन गई। सिद्धार्थ यादव
क्या नशा कम है इस जमाने में। जो बोतल लिए फिरते हो हाथों में । सिद्धार्थ यादव (सिद्धार्थ के अल्फाज़) और कविता संग्रह
ये क्या हो रहा है प्यार के बाजार में नफ़रतो का बोल बाला हैं इसी लिए शहर शहरों का मारा हुआ हूं ।। सिद्धार्थ