दिल के जज्बातो से सारा खत भर दिया
पर तेरे घर का पता लिखने की हिम्मत न थी।
आज भी इसी कश्मकश में उलझे हैं
ये दुनिया नकली है या लोगो का प्यार।
हमारी ख़ुशी का दरवाजा "बचपन वाली जिंदगी, बुढ़ापे वाले पैसे और जवानी वाले शरीर" के बीच कही छुपा है।
Div Mishra
अपनों से मिलने के लिए फुर्सत के पल ढूंढता था, अब फुर्सत ही फुर्सत है पर अपने नहीं
Div Mishra