हर शक्स बिकता है इस शहर में,
कोई रूह से ,कोई आफ़ताब से !!
अभिनव दफ्तुअर
हर एक जज्बात को बड़े एहतियात से रखा था सीने से लगा कर !
ना जाने कब खर्च हो गए जिन्दगी जीने में!!
अभिनव दफ़तुअर
एक वक़्त था जब इंसान को उसकी सूरत से पहचानते थे ,
आज वो वक़्त है जहाँ इंसान की फ़ितरत पर भी सवाल है !!
जुबां पर बाते कुछ और होती है ,
और दिल में बेहिसाब नफरतों की किश्तें लिए फिरते है!!
अभिनव दफ्तुअर