तन-मन व अन्तर्मन से,
"पूर्णतः शुद्ध" हो जाना!
आसान न होता जग में,
"महात्मा बुद्ध" हो जाना!
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है संतोष उन्हें जीवन में, जो आचरण से सादे हैं।
हैं राजा-प्रजा, देव व दूत, हम तो केवल प्यादे हैं।
"गूंगे-बहरों की नगरी में, कोई गीत नया गाते रहिए।
रोने को बहाने हैं बहुत, सदा हंसते व हंसाते रहिए।"
"नीड़ में भीड़ मिलेगी, सबके घर आते-जाते रहिए।
काव्य का यौवन निखरेगा, छंद नित बनाते रहिए।"