Rajesh Verma
Literary Lieutenant
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चाँद की चाल में फँसते चकोर देखे हैं.. इक दीद के बाद लोग वन्स मोर कहते देखे हैं.. -राजेश वर्मा

मेरी आँखों के दीपक दो अपनी यादों में जलने दो तेरे घर में रहें दीप जले मेरे घर दीपक भी, मैं भी -राजेश वर्मा

हर दीवार पर तेरे अक्स का दीदार होता है गुज़रे हुए लम्हों का यही किरदार होता है.. -राजेश वर्मा

चांद के रूख से कोई पर्दा हटा गया.. आसमां से जमीन की दूरी मिटा गया.. -राजेश वर्मा

ये दिन और रात नहीं अपने ना आँखों में कोई सपने सारी खुशियां हैं निकल पड़ीं मुझसे अब दूर कहीं बसने

चाँद ने मुझसे कहा इक रोज धोखा खायेगा मैं भी अड़ियल था कहा जो होगा देखा जायेगा..


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