मैं कविताएँ नहीं भावनाएँ लिखना चाहती हूँ जिनसे सभी जुड़ सकें |
Share with friendsसारे जहां को छोड़, चल चलते हैं दूर उन दरख़्तों के साये में, जहाँ मिलता है सुकून जहाँ ख़्वाहिशों को मिलती है उड़ान और सपनों को मिलता है जुनून ...
उम्र नहीं है मेरी इतनी मगर जितनी भी जी है ज़िंदगी मैने जितने भी मिले हैं लोग मुझसे मिले हैं मुझे तजुर्बे उतने | कल्पना यादव
स्वयं को समझने के लिए आत्ममंथन अति आवश्यक है और इससे भी आवश्यक यह है कि आत्ममंथन विचारों का हो न कि भूतकाल की स्मृतियों का
When the 'love' knocked at my heart's door, I was afraid to open it. But now when I really want to be with 'love', it is lost.