वैशाली सिंह
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शब्दों की गहराईयों में उतरते चले जाना है, मुझे लिखना है बस लिखते चले जाना है

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मुझे कृपा की नहीं कृपाकार की दरकार है

एक पुरानी साँझ की अपेक्षा इंतजार करो नई सुबह का

"जिंदगी से हारने वाले तेरे जीने का अभी तजुर्बा ही क्या था "


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